खुद की खामियों को पहचान लेते हैं, आओ बराबर- | हिंदी शायरी

"खुद की खामियों को पहचान लेते हैं, आओ बराबर-बराबर नुकसान लेते हैं, यूं कब तक एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाएंगे, हम दोनों ग़लत थे, चलो ये मान लेते हैं। ©दुर्गेश"

 खुद  की  खामियों  को  पहचान  लेते  हैं,
आओ  बराबर-बराबर  नुकसान  लेते  हैं, 
यूं कब तक एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाएंगे,
हम दोनों  ग़लत थे, चलो  ये मान लेते हैं।

©दुर्गेश

खुद की खामियों को पहचान लेते हैं, आओ बराबर-बराबर नुकसान लेते हैं, यूं कब तक एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाएंगे, हम दोनों ग़लत थे, चलो ये मान लेते हैं। ©दुर्गेश

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