|| मैंने जब ख़ुद को देखा  || मैंने जब ख़ुद को देखा | हिंदी कविता

"|| मैंने जब ख़ुद को देखा  || मैंने जब ख़ुद को देखा एक नए अवतार में । ख़ुद से ही लड़ते लड़ते घुटने टेके हार में । न होगा कायर कोई मुझसे पहले कतार में । और कोई न होगा मुझ सा हारा हुआ संसार में । सुख चैन सब बेच आए कोई लाभ नहीं व्यापार में । हौसलों की उड़ाने रद्द है सपनों की दरार में । कागज़ के नाव भटक गए अपनी अपनी धार में । जिंदगी ख़ुद को तराश लिया ठोकरों की मार में । आईने में जब ख़ुद को देखा कोई और ही था किरदार में । मैंने जब ख़ुद को देखा एक नए अवतार में । ©Rakesh Singh Sidar"

 || मैंने जब ख़ुद को देखा  ||

मैंने जब ख़ुद को देखा
एक नए अवतार में । 

ख़ुद से ही लड़ते लड़ते
घुटने टेके हार में । 

न होगा कायर कोई
मुझसे पहले कतार में ।

और कोई न होगा मुझ सा
हारा हुआ संसार में । 

सुख चैन सब बेच आए
कोई लाभ नहीं व्यापार में । 

हौसलों की उड़ाने रद्द है
सपनों की दरार में । 

कागज़ के नाव भटक गए 
अपनी अपनी धार में ।

जिंदगी ख़ुद को तराश लिया
ठोकरों की मार में ।

आईने में जब ख़ुद को देखा
कोई और ही था किरदार में ।
मैंने जब ख़ुद को देखा
एक नए अवतार में ।

©Rakesh Singh Sidar

|| मैंने जब ख़ुद को देखा  || मैंने जब ख़ुद को देखा एक नए अवतार में । ख़ुद से ही लड़ते लड़ते घुटने टेके हार में । न होगा कायर कोई मुझसे पहले कतार में । और कोई न होगा मुझ सा हारा हुआ संसार में । सुख चैन सब बेच आए कोई लाभ नहीं व्यापार में । हौसलों की उड़ाने रद्द है सपनों की दरार में । कागज़ के नाव भटक गए अपनी अपनी धार में । जिंदगी ख़ुद को तराश लिया ठोकरों की मार में । आईने में जब ख़ुद को देखा कोई और ही था किरदार में । मैंने जब ख़ुद को देखा एक नए अवतार में । ©Rakesh Singh Sidar

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