|| मैंने जब ख़ुद को देखा ||
मैंने जब ख़ुद को देखा
एक नए अवतार में ।
ख़ुद से ही लड़ते लड़ते
घुटने टेके हार में ।
न होगा कायर कोई
मुझसे पहले कतार में ।
और कोई न होगा मुझ सा
हारा हुआ संसार में ।
सुख चैन सब बेच आए
कोई लाभ नहीं व्यापार में ।
हौसलों की उड़ाने रद्द है
सपनों की दरार में ।
कागज़ के नाव भटक गए
अपनी अपनी धार में ।
जिंदगी ख़ुद को तराश लिया
ठोकरों की मार में ।
आईने में जब ख़ुद को देखा
कोई और ही था किरदार में ।
मैंने जब ख़ुद को देखा
एक नए अवतार में ।
©Rakesh Singh Sidar
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