आओ ना!🐾लौट कर(बचपन)
जाते-जाते दूर वो फासले इतने कर गया...
अदमुंदी आंखों में मेरी यादें वो भर गया,
अब कहां कोई हंसता-गुदगुदाता दिखता है...
कहां दिल अब मेरा भी बेवजह मुस्कुराता दिखता है।।
अब नहीं मिलते बेहद करीबी यार भी...
आओ ना! लौट कर(बचपन),
तुम देख लो इक बार ही...
बनाये महल जो मिट्टी के थे,
हां,कागज की वो नांव थी...
आसमां में इंतहाई शौक से,
कभी पतंग भी उड़ाई थी।।
अब ना वो जहाज कहीं...
और ना कहीं वो नांव है,
कागजों से खेलने का...
आज भी एक ख़ाब है।।
आरजू यही मेरी हवाओं में झूम लूं ...
बारिशों में बिन छत्तरी गली-गली में घूम लूं ,
बादलों की खिड़कीयां खोलकर मैं झांक लूं...
आईने में आसमां के खुद को मैं तांक लूं।।
अरमां हैं पुराने यार हो...
स्कूल की वो चारदीवार हो,
हम खड़े हो संग में...
मस्तियों का खुमार हो।।
बेवजह मैं नांच लूं...
बेससब मैं रो पड़ूं,
आजाद इतना दिल नहीं...
बचे अब वो दिन नहीं।।
ले चली यादें अब भी...
मुश्किलों से आसानी तक,
हाथ पकड़ पहुंचाती मेरा...
किरदार को मेरे कहानी तक।।
है दिल छोटी-सी कश्ती...
जो खोयी बड़ी लहर में है,
ना गांव में है,ना नगर में है...
बचपन मेरा जाने किस सफर में है।।
अब कभी-भी साथ में...
आंख-मिचौली चलती नहीं,
मैदान में अब कहीं...
यूं शाम ढलती नहीं,
आओ ना! लौट कर...
तुम देख लो इक बार ही।।
-निकिता रावत।
लफ़्ज़ों की ज़ुबां✍️
©Nikita Rawat
zindagikerang