"फिराक जारी है... तलाश जारी है..
हर रूह मे प्यारे बरसात भारी है...
राहें न बनाए जो.. वो इरादे ही क्या...
(हम राह) है ऐसी.. राहो को पनाह जो दे...
गुमराह है मंज़िल.. तू ढूंढ़ने चला है...
भीड़ मे, हर कोइ.. अकेला था.. अकेला है...
जिस बज्म मे, नाचीज़.. इतरा रहा है इतना..
तू बूंद है उसकी.. सागर जो हमारा है...
@ओम (जगदिशपुत्र प्रो. अमोल बाविस्कर)"