मौत। मैं दौड़ता तुझसा नहीं, पर रुकता नहीं हूं हार | हिंदी कविता

"मौत। मैं दौड़ता तुझसा नहीं, पर रुकता नहीं हूं हार कर जिंदगी को जी रहा हूं, मौत को पहचान कर ये आंधियां जो आई हैं, मुझको उड़ा ले जाने को कह दो उन्हें रुकसत करें, बस इक नजर दीदार कर। तेरे ठहर पर आयी हूं, इक बार तो नजरें मिला शिकवा यदि हो तो,जिंदगी से मुझसे किसी का क्या गिला प्यास देती जिंदगी,पर मैं तो ठंडी सी नदी इक बार जो मुझमे बसे, फिर प्यास लगती ही नहीं। रुकती अगर हो तो रुको, जाने की फुरसत है नहीं जल्दी अगर ना हो तुम्हें,तो क्यों न रुकती कुछ दिन यहीं कुछ काम अब भी शेष हैं, कर लू उन्हें, फिर आऊंगा, औरों की भांति मैं भी, गहरी नींद में सो जाऊंगा।"

 मौत।
मैं दौड़ता तुझसा नहीं,
पर रुकता नहीं हूं हार कर
जिंदगी को जी रहा हूं,
मौत को पहचान कर
ये आंधियां जो आई  हैं,
मुझको उड़ा ले जाने को
कह दो उन्हें रुकसत करें,
बस इक नजर दीदार कर।

तेरे ठहर पर आयी हूं,
इक बार तो नजरें मिला
शिकवा यदि हो तो,जिंदगी से
मुझसे किसी का क्या गिला
प्यास देती जिंदगी,पर
मैं तो ठंडी सी नदी
इक बार जो मुझमे बसे,
फिर प्यास लगती ही नहीं।

रुकती अगर हो तो रुको,
जाने की फुरसत है नहीं
जल्दी अगर ना हो तुम्हें,तो
क्यों न रुकती कुछ दिन यहीं
कुछ काम अब भी शेष हैं,
कर लू उन्हें, फिर आऊंगा,
औरों की भांति मैं भी,
गहरी नींद में सो जाऊंगा।

मौत। मैं दौड़ता तुझसा नहीं, पर रुकता नहीं हूं हार कर जिंदगी को जी रहा हूं, मौत को पहचान कर ये आंधियां जो आई हैं, मुझको उड़ा ले जाने को कह दो उन्हें रुकसत करें, बस इक नजर दीदार कर। तेरे ठहर पर आयी हूं, इक बार तो नजरें मिला शिकवा यदि हो तो,जिंदगी से मुझसे किसी का क्या गिला प्यास देती जिंदगी,पर मैं तो ठंडी सी नदी इक बार जो मुझमे बसे, फिर प्यास लगती ही नहीं। रुकती अगर हो तो रुको, जाने की फुरसत है नहीं जल्दी अगर ना हो तुम्हें,तो क्यों न रुकती कुछ दिन यहीं कुछ काम अब भी शेष हैं, कर लू उन्हें, फिर आऊंगा, औरों की भांति मैं भी, गहरी नींद में सो जाऊंगा।

मौत।

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