कुछ इस कदर रूठ गई जिन्दगी जैसे हाथों में आके छूठ ग | हिंदी शायरी

"कुछ इस कदर रूठ गई जिन्दगी जैसे हाथों में आके छूठ गई जिन्दगी अब तो किसी तरफ उजाला नही घनी काली रात बन गई जिन्दगी जब आती है तो चंद मिनटों की खुशी बनकर जिन्दगी फिर खोजता हुँ अंधरो में वही जिन्दगी क्या कहूँ उसे और कैसे देखूँ उसे अब तो आँखों से धार बन गई है जिन्दगी वो भी क्या करे उसका भी मुझसे ही वास्ता है दखो फिर मजबुर सी हो गई है जिन्दगी ।। ©sanjay Punia"

 कुछ इस कदर रूठ गई जिन्दगी जैसे हाथों में आके छूठ गई जिन्दगी
अब तो किसी तरफ उजाला नही घनी काली रात बन गई जिन्दगी
जब आती है तो चंद मिनटों की खुशी बनकर जिन्दगी फिर 
खोजता हुँ अंधरो में वही जिन्दगी 
क्या कहूँ उसे और कैसे देखूँ उसे अब तो आँखों से धार
बन गई है जिन्दगी
वो भी क्या करे उसका भी मुझसे ही वास्ता है दखो फिर 
मजबुर सी हो गई है जिन्दगी ।।

©sanjay Punia

कुछ इस कदर रूठ गई जिन्दगी जैसे हाथों में आके छूठ गई जिन्दगी अब तो किसी तरफ उजाला नही घनी काली रात बन गई जिन्दगी जब आती है तो चंद मिनटों की खुशी बनकर जिन्दगी फिर खोजता हुँ अंधरो में वही जिन्दगी क्या कहूँ उसे और कैसे देखूँ उसे अब तो आँखों से धार बन गई है जिन्दगी वो भी क्या करे उसका भी मुझसे ही वास्ता है दखो फिर मजबुर सी हो गई है जिन्दगी ।। ©sanjay Punia

जिन्दगी

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