बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझ

"बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ। ऐ खुदा तूने ये क्या किया , फँसकर चल रही गरीबी की घड़ी भी रोक दी तूने। ऐ खुदा ये तूने क्या किया, गरीबों की गरीबी भी छीन ली तूने। जाएँ दरवाजे पे किसके तेरा तो बंद है, गाएँ दुख -दर्द किससे , बाकी तू खुद ही अक्लमंद है। ......बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ। -सौरभ ओझा।"

 बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ,
जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ।
ऐ खुदा तूने ये क्या किया ,
फँसकर चल रही गरीबी की घड़ी भी रोक दी तूने।
ऐ खुदा ये तूने क्या किया,
गरीबों की गरीबी भी छीन ली तूने।
जाएँ दरवाजे पे किसके तेरा तो बंद है,
गाएँ दुख -दर्द किससे ,
बाकी तू खुद ही अक्लमंद है।
......बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ,
जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ।
                                        -सौरभ ओझा।

बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ। ऐ खुदा तूने ये क्या किया , फँसकर चल रही गरीबी की घड़ी भी रोक दी तूने। ऐ खुदा ये तूने क्या किया, गरीबों की गरीबी भी छीन ली तूने। जाएँ दरवाजे पे किसके तेरा तो बंद है, गाएँ दुख -दर्द किससे , बाकी तू खुद ही अक्लमंद है। ......बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ। -सौरभ ओझा।

कोरोना के कहर में गरीबों का दर्द।

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