बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ,
जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ।
ऐ खुदा तूने ये क्या किया ,
फँसकर चल रही गरीबी की घड़ी भी रोक दी तूने।
ऐ खुदा ये तूने क्या किया,
गरीबों की गरीबी भी छीन ली तूने।
जाएँ दरवाजे पे किसके तेरा तो बंद है,
गाएँ दुख -दर्द किससे ,
बाकी तू खुद ही अक्लमंद है।
......बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ,
जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ।
-सौरभ ओझा।
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