जो लोग कहते हैं
औरत का कोई घर नहीं होता सच तो ये है
बिना औरत का कोई घर ही नहीं होता हैं
औरत के क़दम है जो आँगन में आते ही,
हर कोने को अपनी महक से सजाती है।
हंसती है, रोती है, ख़ुशियाँ बाँटती,
हर ग़म को अपनी मुस्कान में छुपाती है।
माँ, बेटी, बहन, पत्नी बनकर,
हर रिश्ता निभाती है औरत
हर दिल में जगह बनाकर,
घर को स्वर्ग बनाती है औरत
उँगलियों से सींचती है खुशियों की उमंग
छोटे-छोटे लम्हों में भरती हैं रंग बिरंगे पल
परछाइयों में उसकी छवि रहती हैं
वो तो हर साँस में बसती है, खिलती है।
तो कहने वालों, सुन लो ये बात,
औरत का अस्तित्व ही घर की सौगात।
सच तो यही है, इससे ही महकता घर आंगन
बिना औरत के सुना है बच्चों का आँचल।
©Writer Mamta Ambedkar
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