कितने ही शहीद हुए, कितनों ने गोली खाई, कितने ही फ | हिंदी कविता Video

"कितने ही शहीद हुए, कितनों ने गोली खाई, कितने ही फांसी पर चढ़े, कितनों ने जान गंवाई । कतरा कतरा खून से लिखी गई कहानी है, सेनानियों के बलिदानों की ये अमर कहानी है । दिन भर के अनेक संघर्षो से वो थकते नहीं थे, अपनी मातृभूमि के खातिर जातियों में बंटते नहीं थे । हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब हुआ करते थे, अनेक जातियां थी फिर भी वो भाई हुआ करते थे । अपनी परवाह किए बिना भविष्य नया लिख रहे थे, स्वाधीनता का नया बीज इस मिट्टी में बो रहे थे । जोश और जुनून इस कदर सर पे चढ़ा होता था, कांपते थे पैर दुश्मनों के जब देशभक्त खड़ा होता था । जो लड़ें ब्रिटिशी हुकूमत से हर वक्त सीना ताने, झुके नहीं किसी के आगे वो भारत माँ के दीवाने । ना की परवाह अपनी, ना ही अपनों की, फंदे पे लटका दी ख्वाहिशें यूहीं अपने सपनों की । देश के खातिर मर मिटने वाला हर एक शहीद अमर हुआ, इसके खिलाफ़ जो खड़ा हुआ वो जीते जी दफ़न हुआ । ©तुषार "बिहारी" "

कितने ही शहीद हुए, कितनों ने गोली खाई, कितने ही फांसी पर चढ़े, कितनों ने जान गंवाई । कतरा कतरा खून से लिखी गई कहानी है, सेनानियों के बलिदानों की ये अमर कहानी है । दिन भर के अनेक संघर्षो से वो थकते नहीं थे, अपनी मातृभूमि के खातिर जातियों में बंटते नहीं थे । हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब हुआ करते थे, अनेक जातियां थी फिर भी वो भाई हुआ करते थे । अपनी परवाह किए बिना भविष्य नया लिख रहे थे, स्वाधीनता का नया बीज इस मिट्टी में बो रहे थे । जोश और जुनून इस कदर सर पे चढ़ा होता था, कांपते थे पैर दुश्मनों के जब देशभक्त खड़ा होता था । जो लड़ें ब्रिटिशी हुकूमत से हर वक्त सीना ताने, झुके नहीं किसी के आगे वो भारत माँ के दीवाने । ना की परवाह अपनी, ना ही अपनों की, फंदे पे लटका दी ख्वाहिशें यूहीं अपने सपनों की । देश के खातिर मर मिटने वाला हर एक शहीद अमर हुआ, इसके खिलाफ़ जो खड़ा हुआ वो जीते जी दफ़न हुआ । ©तुषार "बिहारी"

कितने ही शहीद हुए, कितनों ने गोली खाई,
कितने ही फांसी पर चढ़े, कितनों ने जान गंवाई ।

कतरा कतरा खून से लिखी गई कहानी है,
सेनानियों के बलिदानों की ये अमर कहानी है ।

दिन भर के अनेक संघर्षो से वो थकते नहीं थे,
अपनी मातृभूमि के खातिर जातियों में बंटते नहीं थे ।

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