मैं गालिब औंर गुलजार की बात नही करता... जो दर्द के | हिंदी शायरी

"मैं गालिब औंर गुलजार की बात नही करता... जो दर्द के मूशाय़रे लिखे है, मैं अपने बिते हूऐ पल रूबरू हूऐ हालातों पर तंज कस रहा हूं इतने जाल़िम क्यों है.. ए -वक्त. समय बदलता क्यों नही जो तरस नही खाते... बस... लढ़ने के लिऐ दिन जागने के लिए रात है.. नींदे तो भटक़ती रहे गई.. अकेले सफर मे रूह अंशात है.. अंधेरे खोली मे इंतजार है , कहीं से भी उम्मीद की रोशनी मिल जाए.. पर रात क्यों नही गुजरती.. तनहा- तनहा हालातों से.. ©ganesh suryavanshi"

 मैं गालिब औंर गुलजार की बात नही
करता...
जो दर्द के मूशाय़रे लिखे है,
मैं अपने बिते हूऐ पल
रूबरू हूऐ हालातों
पर तंज कस रहा हूं
इतने जाल़िम क्यों है..
ए -वक्त. समय बदलता क्यों नही
जो तरस नही खाते...
बस...
लढ़ने के लिऐ दिन
जागने के लिए रात है..
नींदे तो भटक़ती रहे गई..
अकेले सफर मे
रूह अंशात है..
अंधेरे खोली मे
इंतजार है ,
कहीं से भी
उम्मीद की रोशनी मिल जाए..
पर रात क्यों नही गुजरती..
तनहा- तनहा हालातों से..

©ganesh suryavanshi

मैं गालिब औंर गुलजार की बात नही करता... जो दर्द के मूशाय़रे लिखे है, मैं अपने बिते हूऐ पल रूबरू हूऐ हालातों पर तंज कस रहा हूं इतने जाल़िम क्यों है.. ए -वक्त. समय बदलता क्यों नही जो तरस नही खाते... बस... लढ़ने के लिऐ दिन जागने के लिए रात है.. नींदे तो भटक़ती रहे गई.. अकेले सफर मे रूह अंशात है.. अंधेरे खोली मे इंतजार है , कहीं से भी उम्मीद की रोशनी मिल जाए.. पर रात क्यों नही गुजरती.. तनहा- तनहा हालातों से.. ©ganesh suryavanshi

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