मैंने किस तरह जिंदगी तबाह की क्या बताऊँ,
मोहब्बत शराब एक साथ पी क्या बताऊँ,
समंदर भी शांत था बीच मजधार में
किनारे पर पहुँचकर कश्ती डुबी क्या बताऊँ,
उल्फ़त में खुद को बेहतर समझा था मगर,
उसे मुझसे भी बेहतर मिल गया तो क्या बताऊँ,
अगर मैं उसे छू लेता तो वो भी यहीं रुकता,
पर मैंने उसे पलकों पर रखा तो क्या बताऊँ,
ऐसा नहीं कि मुझपर उसने कोई हक नहीं रखा,
ये हक उसने औरों पर भी रखा तो क्या बताऊँ।।
©Ajay Dudhwal
मैंने किस तरह जिंदगी तबाह की क्या बताऊँ,
मोहब्बत शराब एक साथ पी क्या बताऊँ,
समंदर भी शांत था बीच मजधार में
किनारे पर पहुँचकर कश्ती डुबी क्या बताऊँ,
उल्फ़त में खुद को बेहतर समझा था मगर,
उसे मुझसे भी बेहतर मिल गया तो क्या बताऊँ,