अभी तो मै अपरिपक्व हूं मुझको थोड़ा परिपक्व बना दो | हिंदी कविता

"अभी तो मै अपरिपक्व हूं मुझको थोड़ा परिपक्व बना दो ना दुनिया की इस भीड़ में मुझको चलना सीखा दो ना बहुत रोती हूं बात बात पर मुझको हंसना सीखा दो ना दुनिया की इस ऊंच नीच को मुझको को भी समझा दो ना कौन कब कैसे बदलेगा पहले से बतला दो ना तेरे सिवा किसी और पर नही मुझको कोई भरोसा मां ©Savita Nimesh"

 अभी तो मै अपरिपक्व हूं
मुझको थोड़ा परिपक्व बना दो  ना

दुनिया की इस  भीड़ में 
मुझको चलना सीखा दो ना

बहुत रोती हूं बात बात पर
मुझको हंसना सीखा दो ना

दुनिया की इस ऊंच नीच को
मुझको को भी समझा दो ना

कौन कब कैसे बदलेगा
पहले से बतला दो ना

तेरे सिवा किसी और पर 
नही मुझको कोई भरोसा मां

©Savita Nimesh

अभी तो मै अपरिपक्व हूं मुझको थोड़ा परिपक्व बना दो ना दुनिया की इस भीड़ में मुझको चलना सीखा दो ना बहुत रोती हूं बात बात पर मुझको हंसना सीखा दो ना दुनिया की इस ऊंच नीच को मुझको को भी समझा दो ना कौन कब कैसे बदलेगा पहले से बतला दो ना तेरे सिवा किसी और पर नही मुझको कोई भरोसा मां ©Savita Nimesh

मां

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