जो दहलीज छोड़ी थी गाँव की मैंने, शहर की चौखट पर आकर

"जो दहलीज छोड़ी थी गाँव की मैंने, शहर की चौखट पर आकर ठहर गया। ये मेरा मन नादान रुका है वहीं अब तक, में ख्वाहिशें लेकर न जाने कहाँ निकल गया। ©Ram Solanki"

 जो दहलीज छोड़ी थी गाँव की मैंने,
शहर की चौखट पर आकर ठहर गया।
ये मेरा मन नादान रुका है वहीं अब तक,
में ख्वाहिशें लेकर न जाने कहाँ निकल गया।

©Ram Solanki

जो दहलीज छोड़ी थी गाँव की मैंने, शहर की चौखट पर आकर ठहर गया। ये मेरा मन नादान रुका है वहीं अब तक, में ख्वाहिशें लेकर न जाने कहाँ निकल गया। ©Ram Solanki

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