चंद्रमा जिनका मुकुट है।  गंगा को धारण किये मेघ जि | हिंदी Poetry

"चंद्रमा जिनका मुकुट है।  गंगा को धारण किये मेघ जिनकी जटा है। नील आकाश जिनका कण्ठ है। शीतल वायू ही जिनके गले को आभूषित करते सर्प है। ऊँचे पर्वत जिनके कंधे है। वन वृक्ष जिनके वस्त्र है। पृथ्वी जिनकी जाँघे है। पद्मासन पर बैठे प्रकृति को सवेंग में धारण किये हुए, जगत रूप में सहज ही हमें दर्शन देने वाले, उस परमेश्वर शिव को मेरा प्रणाम।  ॐ नमः शिवाय ! ©Abhijeet Dey"

 चंद्रमा जिनका मुकुट है। 

गंगा को धारण किये मेघ जिनकी जटा है।

नील आकाश जिनका कण्ठ है।

शीतल वायू ही जिनके गले को आभूषित करते सर्प है।

ऊँचे पर्वत जिनके कंधे है।

वन वृक्ष जिनके वस्त्र है।

पृथ्वी जिनकी जाँघे है।

पद्मासन पर बैठे प्रकृति को सवेंग में धारण किये हुए, 

जगत रूप में सहज ही हमें दर्शन देने वाले,

उस परमेश्वर शिव को मेरा प्रणाम। 


ॐ नमः शिवाय !

©Abhijeet Dey

चंद्रमा जिनका मुकुट है।  गंगा को धारण किये मेघ जिनकी जटा है। नील आकाश जिनका कण्ठ है। शीतल वायू ही जिनके गले को आभूषित करते सर्प है। ऊँचे पर्वत जिनके कंधे है। वन वृक्ष जिनके वस्त्र है। पृथ्वी जिनकी जाँघे है। पद्मासन पर बैठे प्रकृति को सवेंग में धारण किये हुए, जगत रूप में सहज ही हमें दर्शन देने वाले, उस परमेश्वर शिव को मेरा प्रणाम।  ॐ नमः शिवाय ! ©Abhijeet Dey

ॐ नमः शिवाय ।

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