अब अनजान राहों से भी, गुजरने लगा हूं मैं। रफीक कम | हिंदी शायरी

"अब अनजान राहों से भी, गुजरने लगा हूं मैं। रफीक कम हो रहे, शायद सुधरने लगा हूं मैं। बहुत रह चुका, फलक की ऊंचाई पर। आहिस्ता से जमीं पर, उतरने लगा हूं मैं। ©Shreshth"

 अब अनजान राहों से भी,
गुजरने लगा हूं मैं।
रफीक कम हो रहे,
शायद सुधरने लगा हूं मैं।
बहुत रह चुका,
फलक की ऊंचाई पर।
आहिस्ता से जमीं पर,
उतरने लगा हूं मैं।

©Shreshth

अब अनजान राहों से भी, गुजरने लगा हूं मैं। रफीक कम हो रहे, शायद सुधरने लगा हूं मैं। बहुत रह चुका, फलक की ऊंचाई पर। आहिस्ता से जमीं पर, उतरने लगा हूं मैं। ©Shreshth

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