वास्तविक रूप से जीवन में सब कुछ क्षणिक है। परिवर्तन सत्य है और प्रकृति का स्वभाव है। यह मेरा शरीर पल पल मर रहा है अर्थात् बदलता रहता है। जो आज है वो आने वाले कल और बीते हुए कल दोनों से भिन्न है। मेरे मस्तिष्क में लगातार परिवर्तन है, अभी कुछ खयाल में है तो अगले ही क्षण कुछ और...
बस इन सब से परे आत्मन है जो मुझमें एक सत्य है और स्थायी रूप से मौजूद है, आखिर में इतना कि आत्मन ही ब्रह्मं है।
"अहम् ब्रह्मास्मि"
मै ब्रह्म हूं।
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