जैसे, चिलचिलाती धूप में, कोई ठंडी हवा का झोंका छु | हिंदी शायरी

"जैसे, चिलचिलाती धूप में, कोई ठंडी हवा का झोंका छु जाता है ना , ऐसा कुछ। वो सर्दी की स्यामो में, चायी के गिलाश से, उंगलियों को जो गर्माहट मिलती है ना, वैसा कुछ। जो चाहा ना वो मिल जाये उस खुशी सा, मृग तृस्णा में मृग की तीस बुझ जाये, उस सा, सौर में खामोसी की चाह जैसा मुश्किलों में राह जैसा तूफा में साहिल सा, खोये को हाशिल सा होता है, "पहले पहले प्यार का एहसास" ©sanjay kumar kumola"

 जैसे,
चिलचिलाती धूप में,
कोई ठंडी हवा का झोंका छु जाता है ना ,
ऐसा कुछ।
वो सर्दी की स्यामो में,
चायी के गिलाश से,
उंगलियों को जो गर्माहट मिलती है ना,
वैसा कुछ।
जो चाहा ना वो मिल जाये
उस खुशी सा,
मृग तृस्णा में मृग की तीस बुझ जाये,
उस सा,
सौर में खामोसी की चाह
जैसा
मुश्किलों में राह जैसा
तूफा में साहिल सा,
खोये को हाशिल सा
होता है,
"पहले पहले प्यार का एहसास"

©sanjay kumar kumola

जैसे, चिलचिलाती धूप में, कोई ठंडी हवा का झोंका छु जाता है ना , ऐसा कुछ। वो सर्दी की स्यामो में, चायी के गिलाश से, उंगलियों को जो गर्माहट मिलती है ना, वैसा कुछ। जो चाहा ना वो मिल जाये उस खुशी सा, मृग तृस्णा में मृग की तीस बुझ जाये, उस सा, सौर में खामोसी की चाह जैसा मुश्किलों में राह जैसा तूफा में साहिल सा, खोये को हाशिल सा होता है, "पहले पहले प्यार का एहसास" ©sanjay kumar kumola

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