White रचना दिनांक 4,, नवम्बर 2024 वार सोमवार सम | हिंदी विचार

"White रचना दिनांक 4,, नवम्बर 2024 वार सोमवार समय दोपहर तीन बजे, ््निज विचार ््् ्््भावचित्र ्््् ््् ्््शीर्षक ्् ्््सृष्टि ब़म्ह कर्म सृजन में , मानसिक रूप ईश वंदना, प्रेयर नमन में , समरुपता एक ऐकेश्वर नरकंकाल है,, यही शबद शब्दों का ज्ञानरस लोकसृजनमें में , यह जीवन समर्पित भाव आनंद में ्््् ्््् मन काढी तन की माटी,, जब चढ़े काम की अंगेठी पे , सो अगन लगे,सो तपन लगे,वो भट्टे कुम्हार के, वो धधक उठी है वो मटके हाण्डी से पके,, वो घट्टी में चक्का पीसन लागी रै।। जो काया माया के ढोल मंजीरै ,, चक्का चाले बाजै घर घर कै, मैं काल घड़ी का कांचा हाण्डा में,।। कुंभकार की माटी के बासण में,, जल शीतल होय जाय रै।। अरै मचा बवंडर काया माया के, मोह जाल में फंसे जीव जगत में ज्ञान से, तो मचा बवंडर वो सूरज्ञान इंगला पिंगला , नाड़ी शोधन सुष्मणा चली गई।। आ गयी वो लै आयी यह डौली बोली शैली में,, प्रेम प्यार में हो गई दिवानी, तेरे बूंलन्द इस दिल जहां में,, तेरे मेरे का अब रहा नहीं कुछ,सब खैला है, ये वक्त का मैला ठैला है।। कौन कहां है अता पता नहीं है,, ये,चला चली का दौर है।। अब रहा सवाल कि तू मूझसे बेखबर है,, मैं तो आपके साथ खड़ा हूं, , आप मेरे लिए एक ईश्वर सत्य हो ।। ये टेम टेम की बात है हैरान परेशान जमाने से, वो मंज़र देखा इन्सान अपनी रूह में समाया हुआ खो गया हममें तुममें, सब कुछ प्रभू आत्म संतोष में ।। ्््््कवि शैलेंद्र आनंद 4,, नवम्बर,,2024,, ©Shailendra Anand"

 White रचना दिनांक   4,, नवम्बर 2024
वार  सोमवार
समय दोपहर तीन बजे,
््निज विचार ्््
्््भावचित्र ््््
्््
्््शीर्षक ््
्््सृष्टि ब़म्ह कर्म सृजन में ,
मानसिक रूप ईश वंदना, प्रेयर नमन में ,
समरुपता एक ऐकेश्वर नरकंकाल है,,
 यही शबद शब्दों का ज्ञानरस लोकसृजनमें में ,
यह जीवन समर्पित भाव आनंद में ््््
््््
मन काढी तन की माटी,,
 जब चढ़े काम की अंगेठी पे ,
सो अगन लगे,सो तपन लगे,वो भट्टे कुम्हार के, 
वो धधक उठी है  वो मटके हाण्डी से पके,,
 वो घट्टी  में चक्का पीसन लागी रै।।
 जो काया माया के ढोल मंजीरै ,,
चक्का चाले बाजै घर घर कै,
 मैं काल घड़ी का कांचा हाण्डा में,।।
 कुंभकार की माटी के बासण में,,
 जल शीतल होय जाय रै।।
अरै मचा बवंडर काया माया के,
 मोह जाल में फंसे  जीव जगत में ज्ञान से,
 तो मचा बवंडर वो सूरज्ञान इंगला पिंगला ,
नाड़ी शोधन सुष्मणा चली गई।।
आ गयी वो लै आयी यह डौली बोली शैली में,,
प्रेम प्यार में  हो गई दिवानी,
 तेरे बूंलन्द इस दिल जहां में,,
तेरे मेरे का अब रहा नहीं कुछ,सब खैला है,
 ये वक्त का मैला ठैला है।।
कौन कहां है अता पता नहीं है,,
ये,चला चली का दौर है।।
 अब  रहा सवाल  कि तू मूझसे बेखबर है,,
 मैं तो आपके साथ खड़ा हूं,
, आप मेरे लिए एक ईश्वर सत्य हो ।।
 ये टेम टेम की बात है  हैरान परेशान जमाने से,
 वो मंज़र देखा इन्सान अपनी रूह में
 समाया हुआ खो गया हममें तुममें,
 सब कुछ प्रभू आत्म संतोष में ।।
्््््कवि शैलेंद्र आनंद 
4,, नवम्बर,,2024,,

©Shailendra Anand

White रचना दिनांक 4,, नवम्बर 2024 वार सोमवार समय दोपहर तीन बजे, ््निज विचार ््् ्््भावचित्र ्््् ््् ्््शीर्षक ्् ्््सृष्टि ब़म्ह कर्म सृजन में , मानसिक रूप ईश वंदना, प्रेयर नमन में , समरुपता एक ऐकेश्वर नरकंकाल है,, यही शबद शब्दों का ज्ञानरस लोकसृजनमें में , यह जीवन समर्पित भाव आनंद में ्््् ्््् मन काढी तन की माटी,, जब चढ़े काम की अंगेठी पे , सो अगन लगे,सो तपन लगे,वो भट्टे कुम्हार के, वो धधक उठी है वो मटके हाण्डी से पके,, वो घट्टी में चक्का पीसन लागी रै।। जो काया माया के ढोल मंजीरै ,, चक्का चाले बाजै घर घर कै, मैं काल घड़ी का कांचा हाण्डा में,।। कुंभकार की माटी के बासण में,, जल शीतल होय जाय रै।। अरै मचा बवंडर काया माया के, मोह जाल में फंसे जीव जगत में ज्ञान से, तो मचा बवंडर वो सूरज्ञान इंगला पिंगला , नाड़ी शोधन सुष्मणा चली गई।। आ गयी वो लै आयी यह डौली बोली शैली में,, प्रेम प्यार में हो गई दिवानी, तेरे बूंलन्द इस दिल जहां में,, तेरे मेरे का अब रहा नहीं कुछ,सब खैला है, ये वक्त का मैला ठैला है।। कौन कहां है अता पता नहीं है,, ये,चला चली का दौर है।। अब रहा सवाल कि तू मूझसे बेखबर है,, मैं तो आपके साथ खड़ा हूं, , आप मेरे लिए एक ईश्वर सत्य हो ।। ये टेम टेम की बात है हैरान परेशान जमाने से, वो मंज़र देखा इन्सान अपनी रूह में समाया हुआ खो गया हममें तुममें, सब कुछ प्रभू आत्म संतोष में ।। ्््््कवि शैलेंद्र आनंद 4,, नवम्बर,,2024,, ©Shailendra Anand

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्््््कवि शैलेंद्र आनंद

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