मेरा एक शहर है याद शहर... कभी वक्त मिले तो जाता ह | हिंदी शायरी

"मेरा एक शहर है याद शहर... कभी वक्त मिले तो जाता हूँ वहां अतीत की गाड़ी पकड़ के... वहां कुछ किस्सों के पुराने मुहल्ले थे... और कहानियों की जानदार गलियां भी। एक बड़ा पुराना बाजार था... यहां भावनाओं की बोली लगती थीं! एक बगीचा हुआ करता था सबर का जिसमें सकून की सैर को जाया करता था..! मैं पुराने घावों के घर नहीं जाता लेकिन.. जाऊं तो वो... साथ चलने की जिद किया करते हैं... उनको वही सिसकता छोड़... आज की गाड़ी से लौट आता हूं। ©kavita khosla"

 मेरा एक शहर है
याद शहर...

कभी वक्त मिले तो जाता हूँ 

वहां अतीत की गाड़ी पकड़ के... 

वहां कुछ किस्सों के पुराने मुहल्ले थे...

और कहानियों की जानदार गलियां भी। 

एक बड़ा पुराना बाजार था... 

यहां भावनाओं की बोली लगती थीं!

एक बगीचा हुआ करता था सबर का

जिसमें सकून की सैर को जाया करता था..!

मैं पुराने घावों के घर नहीं जाता लेकिन..

जाऊं तो वो... साथ चलने की जिद किया करते हैं... 

उनको वही सिसकता छोड़... आज की गाड़ी से लौट आता हूं।

©kavita khosla

मेरा एक शहर है याद शहर... कभी वक्त मिले तो जाता हूँ वहां अतीत की गाड़ी पकड़ के... वहां कुछ किस्सों के पुराने मुहल्ले थे... और कहानियों की जानदार गलियां भी। एक बड़ा पुराना बाजार था... यहां भावनाओं की बोली लगती थीं! एक बगीचा हुआ करता था सबर का जिसमें सकून की सैर को जाया करता था..! मैं पुराने घावों के घर नहीं जाता लेकिन.. जाऊं तो वो... साथ चलने की जिद किया करते हैं... उनको वही सिसकता छोड़... आज की गाड़ी से लौट आता हूं। ©kavita khosla

याद शहर

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