आग सीने में बड़ी तेज़ जला रख्खी है
मेरी शोहरत ने तेरी नींद उड़ा रख्खी है
शहर मेँ जब से हवा चलने लगी है मेरी
मेरे दुश्मन ने उछल कूद मचा रखी है
लुट गया जो भी बुजर्गों से मिला था हम को
हम ने दस्तार मगर अब भी बचा रख्खी है
ग़ैर मुमकिन है मुझे कोई बला छू जाए
माँ के हाथों ने मेरे सर पे दुआ रख्खी है
ठोकरों में तुझे रखते हैं ख़ुदा वाले मगर।
हम ने ए दुनिया तेरी लाज बचा रक्खी है।
बस उसी चीज़ पे आंखें हैं कई लोगों की
तू ने जो चीज़ दुपट्टे में छुपा रक्खी है
©शमशूदिन सुलेमानी कुरैशी