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शमशूदिन सुलेमानी कुरैशी
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P-२ @everyone रहमत की बारिश बरसने को है शयातीन भी सब जकड़ने को है दिले बाग़-ए-इन्सा संभलने को है हर जानिब नेकी मचलने को है सेहरी से घर सब महकने को है इफ्तारी चादर भी सजने को है मेहमान, रमज़ान बनने को है आसमानी हिलाल अब उतरने को है नसीबा ऐ 'समीर ' संवरने को है क़िस्मत तेरा नाज़ करने को है ©शमशूदिन सुलेमानी कुरैशी
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दोस्त रूठे तो मना लो कि सुना है मैंने आईना टूट के खंजर में बदल जाता है 🙏 ©शमशूदिन सुलेमानी कुरैशी
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