White जिंदगी की जद्दोजहद में
हालात ये कैसे बने है
भूख जो ले आयी थी शहर
वही भूख घर ले चले है
पैरों में छाले की न है चिंता
पैदल मीलों सब चल पड़े है
अपने हाथों से खड़ा किया जो
वही शहर अब गैर बन पड़े है
भ्रम टूटा है अब सबका
अपना जिनको समझे हुए है
हकदार क्या हम थे ऐसे
लौटने को जैसे मजबूर हुए है
मार पड़ी है दोहरी
घर रोजगार सब छीन गए है
बची हुई सांसे समेटकर
जन्मभूमि की ओर चल दिए है
सुध न किसी को मेरी
दर-दर हम भटक रहे है
मजबूर है सब साहब
इसलिए मजदूर सब सह रहे है
©विजय