दुर्जन से मित्रता और शत्रुता दोनों ही कष्टप्रद ... | हिंदी कविता

"दुर्जन से मित्रता और शत्रुता दोनों ही कष्टप्रद ...... सुभाषित " दुर्जनेन समं सख्यं द्वेषम चापि न कारयेत | उष्णो दहति चान्गारः शीतः कृष्णायते करम || " अर्थात - " दुर्जन व्यक्ति से न तो मित्रता करनी चाहिए , न शत्रुता ही | जिस प्रकार ज्वलंत अंगारे को स्पर्श करने से वह हाथ को जलाती है तथा बुझने के पश्चात् उसको स्पर्श करने से वह हाथ को काला कर देती है , ठीक उसी प्रकार दुर्जन की मित्रता अनापेक्षित दुष्परिणामों को तथा उसकी शत्रुता विविध कुपरिणामों को उत्पन्न कर मनुष्य को कष्ट देती है"

 दुर्जन से मित्रता और शत्रुता दोनों ही कष्टप्रद ......
                                                सुभाषित


                    " दुर्जनेन समं सख्यं द्वेषम चापि न कारयेत | 
                     उष्णो दहति चान्गारः शीतः कृष्णायते करम || "


अर्थात -     " दुर्जन व्यक्ति से न तो मित्रता करनी चाहिए , न शत्रुता ही | जिस प्रकार ज्वलंत अंगारे को स्पर्श करने से वह हाथ को जलाती है तथा बुझने के पश्चात् उसको स्पर्श करने से वह हाथ को काला कर देती है , ठीक उसी प्रकार दुर्जन की मित्रता अनापेक्षित दुष्परिणामों को तथा उसकी शत्रुता विविध कुपरिणामों  को उत्पन्न कर मनुष्य को कष्ट देती है

दुर्जन से मित्रता और शत्रुता दोनों ही कष्टप्रद ...... सुभाषित " दुर्जनेन समं सख्यं द्वेषम चापि न कारयेत | उष्णो दहति चान्गारः शीतः कृष्णायते करम || " अर्थात - " दुर्जन व्यक्ति से न तो मित्रता करनी चाहिए , न शत्रुता ही | जिस प्रकार ज्वलंत अंगारे को स्पर्श करने से वह हाथ को जलाती है तथा बुझने के पश्चात् उसको स्पर्श करने से वह हाथ को काला कर देती है , ठीक उसी प्रकार दुर्जन की मित्रता अनापेक्षित दुष्परिणामों को तथा उसकी शत्रुता विविध कुपरिणामों को उत्पन्न कर मनुष्य को कष्ट देती है

दुर्जन से दूरी का शास्रीय माप

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