लगता है कभी-कभी छूट रहा है वक्त हाथों से थोड़ा-थोड | हिंदी Quotes

"लगता है कभी-कभी छूट रहा है वक्त हाथों से थोड़ा-थोड़ा सूरज सा ढलता जाता है यादों का रैन बसेरा पापा के कंधों पर चढ़कर जहां आंगन में यूं खेला वहीं मां के हर फटकार को यूं हंसते हंसते झेला छोटी सी लगती थी जिंदगी बस खुशियों का था मेला हार जीत के झगड़ों का वह शोर था खूब सुनहरा न जाने कब बड़े हो गए न कोई गुजरा लम्हां ठहरा क्यों बचपन का ताना-बाना हमने बचपन में ही छोड़ा ©Megha Chandel"

 लगता है कभी-कभी
छूट रहा है वक्त हाथों से थोड़ा-थोड़ा
सूरज सा ढलता जाता है यादों का रैन बसेरा

पापा के कंधों पर चढ़कर
जहां आंगन में यूं खेला
वहीं मां के हर फटकार को यूं हंसते हंसते झेला

छोटी सी लगती थी जिंदगी
बस खुशियों का था मेला
हार जीत के झगड़ों का वह शोर था खूब सुनहरा

न जाने कब बड़े हो गए
न कोई गुजरा लम्हां ठहरा
क्यों बचपन का ताना-बाना हमने बचपन में ही छोड़ा

©Megha Chandel

लगता है कभी-कभी छूट रहा है वक्त हाथों से थोड़ा-थोड़ा सूरज सा ढलता जाता है यादों का रैन बसेरा पापा के कंधों पर चढ़कर जहां आंगन में यूं खेला वहीं मां के हर फटकार को यूं हंसते हंसते झेला छोटी सी लगती थी जिंदगी बस खुशियों का था मेला हार जीत के झगड़ों का वह शोर था खूब सुनहरा न जाने कब बड़े हो गए न कोई गुजरा लम्हां ठहरा क्यों बचपन का ताना-बाना हमने बचपन में ही छोड़ा ©Megha Chandel

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