सो रहे गहरी नींद में, जगने की जररूत मोहब्बत गुमशु

"सो रहे गहरी नींद में, जगने की जररूत मोहब्बत गुमशुदा, नफ़रत की ही हर ओर मूरत जाति_धरम के नफ़रती जाम लिये वो हमेशा तैयार रहते हम भी गहरी नींद में सोए कुम्भकरन जैसे बीमार रहते सत्ता उन्हें राष्ट्र की इज्जत से प्यारी गिरें जनता उनके बिछाए जाल में रहती पूरी तैयारी शराबखाने अर्थव्यस्था बढ़ाने वाले हुए हुई शाम सब भूलाने को, युवा मदिरा चढ़ाने वाले हुए ख़र्चे होते चुनावी की रैलियों में यहाँ भरपूर राष्ट्र को गर्त में धकेलने में हम सबका भी अप्रत्यक्ष रूप से कसूर चंद पैसों के लिए रैलियों में तांता लगाते अपने बहूमूल्य मतों को चंद पैसों में बेच खाते शिक्षा को केवल नौकरी पाने जरिया मान बैठे और केवल उसी के लिए आपस में भिड़े जा रहे मुसीबत का जड़ से निपटारा करने की ओर तनिक भी ना सोच रहे कंधे पे गधे की तरह केवल धो बोझ रहे | ©Aniket"

 सो रहे गहरी नींद में, जगने की जररूत 
मोहब्बत गुमशुदा, नफ़रत की ही हर ओर मूरत 
जाति_धरम के नफ़रती जाम लिये वो हमेशा तैयार रहते
 हम भी गहरी नींद में सोए कुम्भकरन जैसे बीमार रहते
सत्ता उन्हें राष्ट्र की इज्जत से प्यारी 
गिरें जनता उनके बिछाए जाल में रहती पूरी तैयारी 
शराबखाने अर्थव्यस्था बढ़ाने वाले हुए
हुई शाम सब भूलाने को, 
युवा मदिरा चढ़ाने वाले हुए
ख़र्चे होते चुनावी की रैलियों में यहाँ भरपूर
राष्ट्र को गर्त में धकेलने में हम सबका 
भी अप्रत्यक्ष रूप से कसूर
चंद पैसों के लिए रैलियों में तांता लगाते
अपने बहूमूल्य मतों को चंद पैसों में बेच खाते
शिक्षा को केवल नौकरी पाने जरिया मान बैठे
और केवल उसी के लिए आपस में भिड़े जा रहे
मुसीबत का जड़ से निपटारा करने की 
ओर तनिक भी ना सोच रहे
कंधे पे गधे की तरह केवल धो बोझ रहे |

©Aniket

सो रहे गहरी नींद में, जगने की जररूत मोहब्बत गुमशुदा, नफ़रत की ही हर ओर मूरत जाति_धरम के नफ़रती जाम लिये वो हमेशा तैयार रहते हम भी गहरी नींद में सोए कुम्भकरन जैसे बीमार रहते सत्ता उन्हें राष्ट्र की इज्जत से प्यारी गिरें जनता उनके बिछाए जाल में रहती पूरी तैयारी शराबखाने अर्थव्यस्था बढ़ाने वाले हुए हुई शाम सब भूलाने को, युवा मदिरा चढ़ाने वाले हुए ख़र्चे होते चुनावी की रैलियों में यहाँ भरपूर राष्ट्र को गर्त में धकेलने में हम सबका भी अप्रत्यक्ष रूप से कसूर चंद पैसों के लिए रैलियों में तांता लगाते अपने बहूमूल्य मतों को चंद पैसों में बेच खाते शिक्षा को केवल नौकरी पाने जरिया मान बैठे और केवल उसी के लिए आपस में भिड़े जा रहे मुसीबत का जड़ से निपटारा करने की ओर तनिक भी ना सोच रहे कंधे पे गधे की तरह केवल धो बोझ रहे | ©Aniket

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