पाँवों में काँटा चुभता है
लेकिन चलना तो पड़ता है
मोल नहीं है सच का कोई
पर खोटा सिक्का चलता है
सपने सारे बिखरे जब से
दिल चुपके चुपके रोता है
आया है पतझड़ का मौसम
शाखों से पत्ता झड़ता है
कोई नग़मा फिर छेड़ो तुम
कुछ सुनने को मन करता है
साँसों का चलना है जीवन
पल भर का रिश्ता नाता है
आफ़त सर पर रहती 'हिमकर'
हँस कर हर दुःख सह लेता है
©Himkar Shyam
#ग़ज़ल#शायरी