होता क्या है प्रेम आज हमने अपनी आंखों से देखा है
एक पत्थर दिल इंसान को आज फिर प्रेम रोग में टूटते देखा है
प्रेम वियोग ऐसा कि काली स्याह रातों में उसे रोते देखा है
और तपती दोपहर भी उसे बको ध्यान में बैठा देखा है।
ध्यान मग्न बैठा-बैठा सोच रहा है कि कैसे होगा लक्ष्य प्रतिरक्षा
इस विचार में आज हमने उसे प्रतीक्षारत देखा है,
कोई तो बैठा है उसकी कुंडली में साढ़े साती बनकर।
उसी नक्षत्रो में कोई बैठा बैठा सूर्य को चाँद्र लगन में जाते देखा है।
आँखों में बह रही अश्रु धारा में आज उसे फिर डूबते देखा है,
एक पत्थर दिल इंसान को आज फिर हमने प्रेम रोग में टूटते देखा
©ajaynswami
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