धुन वही पर अड़ गई है,
ताल सुर से लड़ गई है!
काठ-पुल आशा की लकड़ी
आंसुओं में सड़ गई है!
मृत्यु आती ही नहीं है,
श्वास पीछे पड़ गई है!
डाल तो ऊंची ही होगी,
खूब नीचे जड़ गई है!
गंतव्य जानती थी अपना,
लाश खुद ही गड़ गई है!
एक पत्ती वसंत में देखो,
'क्रांति!' कहकर झड़ गई है!
#nojotohindi