कभी इस ज़माने से तो कभी खुद से ही लड़े है, कुछ टूट | हिंदी Shayari

"कभी इस ज़माने से तो कभी खुद से ही लड़े है, कुछ टूट के बिखर गए... कुछ झूठी हँसी का लिबास ओढ़े आगे बढ़े है। कई निकल गए नई मोहब्बत की तलाश मे... कई पुरानों मे ही उलझे पड़े है, पर अगर सब गिरे है ज़ख्मी यहाँ... तो ये ज़ख्म देने वाले कहाँ खडे है? ये दिल तोड़ता कौन है? यहां तो सब टूटे पडे है।। कमरों मे अकेले किसी ना किसी से... सब रूठे पड़े है।। चारों ओर देखो तो... हर कदम पर आशिक खडे है... कुछ छोड़ चुके है उम्मीद... तो कुछ अब तक ज़िद पर अड़े है। ये आखिर दिल तोड़ता कौन है? यहाँ तो सब टूटे पड़े है। ©Thepoetic"

 कभी इस ज़माने से तो कभी खुद से ही लड़े है,
कुछ टूट के बिखर गए...                                   
कुछ झूठी हँसी का लिबास ओढ़े आगे बढ़े है।
कई निकल गए नई मोहब्बत की तलाश मे...        
कई पुरानों मे ही उलझे पड़े है,                              
पर अगर सब गिरे है ज़ख्मी यहाँ...                       
तो ये ज़ख्म देने वाले कहाँ खडे है?
ये दिल तोड़ता कौन है?                                    
यहां तो सब टूटे पडे है।।

कमरों मे अकेले किसी ना किसी से...                  
सब रूठे पड़े है।।
चारों ओर देखो तो...                                          
हर कदम पर आशिक खडे है... 
कुछ छोड़ चुके है उम्मीद...                                  
तो कुछ अब तक ज़िद पर अड़े है।
ये आखिर दिल तोड़ता कौन है?                          
यहाँ तो सब टूटे पड़े है।

©Thepoetic

कभी इस ज़माने से तो कभी खुद से ही लड़े है, कुछ टूट के बिखर गए... कुछ झूठी हँसी का लिबास ओढ़े आगे बढ़े है। कई निकल गए नई मोहब्बत की तलाश मे... कई पुरानों मे ही उलझे पड़े है, पर अगर सब गिरे है ज़ख्मी यहाँ... तो ये ज़ख्म देने वाले कहाँ खडे है? ये दिल तोड़ता कौन है? यहां तो सब टूटे पडे है।। कमरों मे अकेले किसी ना किसी से... सब रूठे पड़े है।। चारों ओर देखो तो... हर कदम पर आशिक खडे है... कुछ छोड़ चुके है उम्मीद... तो कुछ अब तक ज़िद पर अड़े है। ये आखिर दिल तोड़ता कौन है? यहाँ तो सब टूटे पड़े है। ©Thepoetic

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