एक ख्वाब
नौका की पतवार लिया मे चलता रेगिस्तान , नामुमकिन सा ख्वाब जिया मे बुनता बियेबाँ
लफ्जो की क्या बात करु , अनाथ सपनो की खैरात करु ,
तर्क -वितर्क के मेले मे, अपनी किस्मत को विख्यात करु ,
जब आंधी सी बर्बादी होगी तब बन दीपक जल जाना तुम ,
डोर कमजोर लगे दिल की, तब पंछी जैसे रूह को साहस का दाना खिलाना तुम
लोग प्रयोग करे तुमको, तब दुर्लब योग बन जाना तुम
धीमी आंच जले देशभक्ति की, तब एक स्वर मे इंक़लाब गाना तुम
नौका की पतवार लिया मे चलता रेगिस्तान , नामुमकिन सा ख्वाब जिया मे बुनता बियेबाँ
फ़िक्र से फक्र का सफर ही नायाब है
रुबाब का सैलाब है या तू अनकही सी किताब है ,
वक़्त की महिमा है हसायगी रुलाएगी
तेरी ज़िंदगानी को दुनिया ,मुजुबानी धोरायेगी
जब तू खुद को तराशेगा तब दुनिया तलाशेगी
एक ख्वाब