White छाती से चिपक कर एक बच्चा रोता है बिलखता रहता है
नन्हा शिशु भूख की लपटों मे हर घड़ी झुलसता रहता है।।
माँ के आँचल में दूध नहीं पानी भी आँख का सूखा है
क्या करे किस तरह शांत करे उसका बालक जो भूखा है।।
मानस कोई भला दया कर दे इसलिए वो हाथ पसारे है
लोगों के दया की आस लिए लोगों की ओर निहारे है।।
तन पर कुछ कपड़ों का टुकड़ा आँखों में लाज का परदा है
लोगों की नजर कँटीली है अंग प्रत्यंग उसका छिलता है।।
ममता रोती है सिसक सिसक क्या करे नहीं कुछ सूझ रहा
क्या मजबूरी है उस मां की नन्हा बालक नहीं बूझ रहा।।
या करे खुदकुशी बच्चे संग या बिक जाए बाजारों में
आँखों को मूंदे खड़ी खड़ी वो पड़ी है गहन विचारों में।।
रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक
©रिपुदमन झा 'पिनाकी'
#mothers_day कविता