ये बात सच है ये बात सच है की आदमी से खफा परिंदे। ज

"ये बात सच है ये बात सच है की आदमी से खफा परिंदे। जो बस्तियों से गए तो जा कर सुनाया जंगल को हाल अपना तो जानवर भी डरे हुए थे ये बात सच है ये बात सच है वादियां भी हवाओं को ये बता रही थी कि बस्तियों की तरफ़ न जाओ धुएं के बादल दबोच लेंगे मगर हवाओं का दिल न माना ये बात सच है , ये बात सच है कि पेड़ पौधे, चट्टान पत्थर तमाम नदियों से कह रहे थे कि उधर न जाओ शहर वाले जहर बना के तुम्हारे दामन में घोल देंगे वो मगर वो निदिया थीं मा की जैसे, कैसे बच्चो से दूर बहती ये बात सच है, ये बात सच है न बस्तियों में न उगते सूरज की अहमियत थी न डलते सूरज की कद्र बाक़ी ये बात सच है ये बात सच है कि तरक्कीयो नशे में इंसा बेहक रहा था जो सांस देता है आदमी को वो सब्ज जंगल दबक रहा था सिमट रहा था ये बात सच है,ये बात सच है कि आदमी ने नदी को झेड़ा जमी को झेड़ा, समंदरो को हवाओं को झेड़ा अजब सा सिस्टम बना के अपने ख़ुदा को हल्के ख़ुदा को झेड़ा गरज के फिर उसने सभी को झेड़ा फ़िर ख़ुदा ने सबकी सुनके, कोरोना जैसी वावा को चुनके गुरुर उसका मीटा दिया है डारा घर पे बीठा दिया है ये बात सच है ये बात सच है © कमरूद्दीन फलक"

 ये बात सच है ये बात सच है
की आदमी से खफा परिंदे।
जो बस्तियों से गए तो जा कर सुनाया
 जंगल को हाल अपना तो जानवर भी डरे हुए थे
ये बात सच है ये बात सच है
वादियां भी हवाओं को ये बता रही थी
कि बस्तियों की तरफ़ न जाओ धुएं के बादल दबोच लेंगे 
मगर हवाओं का दिल न माना 
ये बात सच है , ये बात सच है
कि पेड़ पौधे, चट्टान पत्थर तमाम नदियों से कह रहे थे 
कि उधर न जाओ शहर वाले जहर बना के 
तुम्हारे दामन में घोल देंगे वो
मगर वो निदिया थीं मा की जैसे,
 कैसे बच्चो से दूर बहती
ये बात सच है, ये बात सच है
न बस्तियों में न उगते सूरज की अहमियत थी 
न डलते सूरज की कद्र बाक़ी
ये बात सच है ये बात सच है 
कि तरक्कीयो नशे में इंसा बेहक रहा था 
जो सांस देता है आदमी  को
 वो सब्ज जंगल दबक रहा था सिमट रहा था 
ये बात सच है,ये बात सच है
कि आदमी ने नदी को झेड़ा
जमी को झेड़ा, समंदरो को हवाओं को झेड़ा
अजब सा सिस्टम बना के 
अपने ख़ुदा को हल्के ख़ुदा को झेड़ा 
गरज के फिर उसने सभी को झेड़ा
 फ़िर ख़ुदा ने सबकी सुनके,
 कोरोना जैसी वावा को चुनके
गुरुर उसका मीटा दिया है 
डारा घर पे बीठा दिया है
ये बात सच है ये बात सच है

© कमरूद्दीन फलक

ये बात सच है ये बात सच है की आदमी से खफा परिंदे। जो बस्तियों से गए तो जा कर सुनाया जंगल को हाल अपना तो जानवर भी डरे हुए थे ये बात सच है ये बात सच है वादियां भी हवाओं को ये बता रही थी कि बस्तियों की तरफ़ न जाओ धुएं के बादल दबोच लेंगे मगर हवाओं का दिल न माना ये बात सच है , ये बात सच है कि पेड़ पौधे, चट्टान पत्थर तमाम नदियों से कह रहे थे कि उधर न जाओ शहर वाले जहर बना के तुम्हारे दामन में घोल देंगे वो मगर वो निदिया थीं मा की जैसे, कैसे बच्चो से दूर बहती ये बात सच है, ये बात सच है न बस्तियों में न उगते सूरज की अहमियत थी न डलते सूरज की कद्र बाक़ी ये बात सच है ये बात सच है कि तरक्कीयो नशे में इंसा बेहक रहा था जो सांस देता है आदमी को वो सब्ज जंगल दबक रहा था सिमट रहा था ये बात सच है,ये बात सच है कि आदमी ने नदी को झेड़ा जमी को झेड़ा, समंदरो को हवाओं को झेड़ा अजब सा सिस्टम बना के अपने ख़ुदा को हल्के ख़ुदा को झेड़ा गरज के फिर उसने सभी को झेड़ा फ़िर ख़ुदा ने सबकी सुनके, कोरोना जैसी वावा को चुनके गुरुर उसका मीटा दिया है डारा घर पे बीठा दिया है ये बात सच है ये बात सच है © कमरूद्दीन फलक

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