आज सदियों के बाद जिन किलो, महलो, मकबरों को हम खुशी | हिंदी Life

"आज सदियों के बाद जिन किलो, महलो, मकबरों को हम खुशी से देखने जाते हैं बावजूद इसके की हम ये जानते हैं की इन बड़े विशाल, सुन्दर किलो के अंतर में झांकती ये उदास मिनारे, बहुत सी अनकही कहानियों का एक गुमसुम गुम्बद हैं और कहीं न कहीं उसके भीतर भरी हुई घुटन, ख़ामोशी एक सुनापन सा हैं और उनमे दबी हुई न जाने कितनो की उदास और अनमानी क़बरे और उनसे जुडा हुआ वो इतिहास, वो लोग और उनको बनाने वाले उनसे जुड़े कलाकारों के न जाने कितने कत्लो की कहानी हैं कुछ ऐसी ही इसकी रूप रेखा हैं एक अज्ञात सा आकर्षण हैं जिनसे न जाने क्यों बहुत सी पलके भीगी हुई हैं एक मूक आस्था हैं जो मानो बताना चाहती हो की जो हम आज देखते है, उस समय की कल्पना करते हैं उसका ये सही रूप नहीं हैं बल्कि बहुत सी आखिरी ख्वाहिशों का शायद एक बेहूदा मज़ाक़ हैं इन बड़ी सी खूबसूरत मीनारो, महलो पर न जाने कितने बेगुनाहो की हत्या का दाग़ हैं यह कोई शायराना ख्वाब जैसा रंगीन नहीं हैं ये उन क्रूर शासको की मदहोश हसरतो का महज़ एक साया हैं ©Virat Kaushik"

 आज सदियों के बाद जिन किलो, महलो, मकबरों को हम खुशी से देखने जाते हैं
बावजूद इसके की हम ये जानते हैं की इन बड़े विशाल, सुन्दर  किलो के
अंतर में झांकती ये उदास मिनारे, बहुत सी अनकही कहानियों का एक गुमसुम गुम्बद हैं

और कहीं न कहीं उसके भीतर भरी हुई
घुटन, ख़ामोशी एक सुनापन सा हैं

और उनमे दबी हुई न जाने कितनो की
उदास और अनमानी क़बरे

और उनसे जुडा हुआ वो इतिहास, वो लोग
और उनको बनाने वाले उनसे जुड़े कलाकारों
के न जाने कितने कत्लो की कहानी हैं

कुछ ऐसी ही इसकी रूप रेखा हैं
एक अज्ञात सा आकर्षण हैं
जिनसे न जाने क्यों बहुत सी
पलके भीगी हुई हैं
एक मूक आस्था हैं

जो मानो बताना चाहती हो की जो
हम आज देखते है, उस समय की कल्पना करते हैं
उसका ये सही रूप नहीं हैं
बल्कि बहुत सी आखिरी ख्वाहिशों का
शायद एक बेहूदा मज़ाक़ हैं

इन बड़ी सी खूबसूरत मीनारो, महलो पर
न जाने कितने बेगुनाहो की हत्या का दाग़ हैं

यह कोई शायराना ख्वाब जैसा रंगीन नहीं हैं
ये उन क्रूर शासको की मदहोश हसरतो का
महज़ एक साया हैं

©Virat Kaushik

आज सदियों के बाद जिन किलो, महलो, मकबरों को हम खुशी से देखने जाते हैं बावजूद इसके की हम ये जानते हैं की इन बड़े विशाल, सुन्दर किलो के अंतर में झांकती ये उदास मिनारे, बहुत सी अनकही कहानियों का एक गुमसुम गुम्बद हैं और कहीं न कहीं उसके भीतर भरी हुई घुटन, ख़ामोशी एक सुनापन सा हैं और उनमे दबी हुई न जाने कितनो की उदास और अनमानी क़बरे और उनसे जुडा हुआ वो इतिहास, वो लोग और उनको बनाने वाले उनसे जुड़े कलाकारों के न जाने कितने कत्लो की कहानी हैं कुछ ऐसी ही इसकी रूप रेखा हैं एक अज्ञात सा आकर्षण हैं जिनसे न जाने क्यों बहुत सी पलके भीगी हुई हैं एक मूक आस्था हैं जो मानो बताना चाहती हो की जो हम आज देखते है, उस समय की कल्पना करते हैं उसका ये सही रूप नहीं हैं बल्कि बहुत सी आखिरी ख्वाहिशों का शायद एक बेहूदा मज़ाक़ हैं इन बड़ी सी खूबसूरत मीनारो, महलो पर न जाने कितने बेगुनाहो की हत्या का दाग़ हैं यह कोई शायराना ख्वाब जैसा रंगीन नहीं हैं ये उन क्रूर शासको की मदहोश हसरतो का महज़ एक साया हैं ©Virat Kaushik

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