मुझे फर्क नही पड़ता (कहना आसान!) जब भी कभी बोलो "म | हिंदी Poetry

"मुझे फर्क नही पड़ता (कहना आसान!) जब भी कभी बोलो "मुझे फर्क नही पड़ता" जरा सोच समझ के ये लब्ज बोला करना क्यूँकि ये आपको सबसे दूर कर रहे होते है और ये न भूले की इंसान सामाजिक प्राणी है जो कभी भी अकेला रह नही शकता है और न कभी सच्चे इंसान से दूरी संभव है अहम का जब अंत होगा तब वह अकेला होगा जल्द ही आँखे खुली तो दूर कभी न होंगे और देर से आँखे खुली तो किसी को न पाओगे ©Parth Vasvani"

 मुझे फर्क नही पड़ता (कहना आसान!)

जब भी कभी बोलो "मुझे फर्क नही पड़ता"
जरा सोच समझ के ये लब्ज बोला करना 
क्यूँकि ये आपको सबसे दूर कर रहे होते है
और ये न भूले की इंसान सामाजिक प्राणी है
जो कभी भी अकेला रह नही शकता है
और न कभी सच्चे इंसान से दूरी संभव है
अहम का जब अंत होगा तब वह अकेला होगा
जल्द ही आँखे खुली तो दूर कभी न होंगे 
और देर से आँखे खुली तो किसी को न पाओगे

©Parth Vasvani

मुझे फर्क नही पड़ता (कहना आसान!) जब भी कभी बोलो "मुझे फर्क नही पड़ता" जरा सोच समझ के ये लब्ज बोला करना क्यूँकि ये आपको सबसे दूर कर रहे होते है और ये न भूले की इंसान सामाजिक प्राणी है जो कभी भी अकेला रह नही शकता है और न कभी सच्चे इंसान से दूरी संभव है अहम का जब अंत होगा तब वह अकेला होगा जल्द ही आँखे खुली तो दूर कभी न होंगे और देर से आँखे खुली तो किसी को न पाओगे ©Parth Vasvani

#लब्ज_ए_पार्थ

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