White Part :- 03
**मैं दिन-रात दौड़ा हूँ, जैसे कोई मैं भंवरा हूँ।
वो जिस रस्ते से जाती थी, वो गलियाँ मुझे बुलाती थीं।
कहती थीं, "यहीं से गुजरी है, जिसकी सागर-सी आँखें गहरी हैं।"
मैं पीछे दौड़ लगाता था, और मन ही मन मुस्काता था।
मेहनत नहीं विफल होगी , विजय आज नहीं तो कल होगी ।
वो एक दिन ज़रूर आएगी, मुझे अपना बतलाएगी।
एक दशक का ये संघर्ष रहा, मत पूछो कैसा वर्ष रहा।
मैं चाहता था बस इतना समझे वो, क्या दवा है इस बीमार का।
मैं जिससे मिलकर जाना हूँ, क्या मतलब होता प्यार का।**
- वीरा अनजान
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©Bir Bahadur Singh