भीगे थे सब यहां होली के रंग में.. मैं उसमें भीग के भी सूखा खड़ा था
रंगों की भीड़ के बीच.. मैं अपने रंग को ढूंढ रहा था
यूँ तो उड़े रंग खूब मुझपर.. पर तेरे संग का रंग अब भी सबसे उम्दा था
शोर तो था रंगों का बाहर पर.. भीतर एक बेरंग सन्नाटा था
खुश तो दिख रहा था शायद मैं लेकिन.. तेरी मोहब्बत का रंग अब भी नहीं लगा था
रंगों के त्योहार पे तुम बिन मैं.. आज भी फीका खड़ा था
~अमित वर्मा
©Amit Verma
#Holi