जिंदगी की कहानी में उलझे हैं इतने किरदारों में
जिस कदर घिरा हुआ है आसमान रात को तारों में,
आज सब निकल गये खुद ही खुद से कहीं दूर
एक जमाना था जब गुजरती हर शाम मेरी यारों में,
अब आता ही नहीं कोई ख्वाब नींद में मुझे
कभी हर ख्वाहिश पूरी होती थी इशारों में,
अब तो बस यूँ ही हो जाती है शाम बेगानी
कभी सारा दिन निकलता था झूमती बहारों में,
हम खुश हो लेते बैठ साथ जो कभी दोस्तों के
अब मुझे मिलता नहीं वो सुकून इन नाजारों में,
©ROHAN BISHT