स्त्री " जाने क्यों कहते हैं लोग एक कोरा काग़ज़ हैं

""स्त्री " जाने क्यों कहते हैं लोग एक कोरा काग़ज़ हैं स्त्री नहीं! ग़लत कहते हैं ना कोरा है और ना काग़ज़ हैं स्त्री अपितु खुद में एक संपूर्ण किताब हैं स्त्री कोरा तो इस किताब में बस एक पन्ना उसके जन्म का हैं बाकी तो हर पन्ने पर लिखी हैं कोई ना कोई इबारत किसी के अधिकारों की या उसके कर्तव्यों की और हैं कुछ बंदिशें मर्यादा की बांधे हैं उसके लिए समाज ने कुछ दायरे भी और बंधी इन्हीं दायरों में ज़िंदगी के आखिरी पन्ने अपने मरण तक इस किताब को पढ़ती नहीं जीती है स्त्री....!! ©Bharat Kumar "

 "स्त्री "
जाने क्यों कहते हैं लोग
एक कोरा काग़ज़ हैं स्त्री
नहीं! ग़लत कहते हैं
ना कोरा है और ना काग़ज़ हैं स्त्री
अपितु खुद में एक संपूर्ण किताब हैं स्त्री
कोरा तो इस किताब में बस एक पन्ना
उसके जन्म का हैं
बाकी तो हर पन्ने पर लिखी हैं
कोई ना कोई इबारत  
किसी के अधिकारों की
या उसके कर्तव्यों की
और हैं कुछ बंदिशें मर्यादा की
बांधे हैं उसके लिए समाज ने
कुछ दायरे भी 
और बंधी इन्हीं दायरों में
ज़िंदगी के आखिरी पन्ने 
अपने मरण तक
इस किताब को पढ़ती नहीं 
जीती है स्त्री....!!

©Bharat Kumar

"स्त्री " जाने क्यों कहते हैं लोग एक कोरा काग़ज़ हैं स्त्री नहीं! ग़लत कहते हैं ना कोरा है और ना काग़ज़ हैं स्त्री अपितु खुद में एक संपूर्ण किताब हैं स्त्री कोरा तो इस किताब में बस एक पन्ना उसके जन्म का हैं बाकी तो हर पन्ने पर लिखी हैं कोई ना कोई इबारत किसी के अधिकारों की या उसके कर्तव्यों की और हैं कुछ बंदिशें मर्यादा की बांधे हैं उसके लिए समाज ने कुछ दायरे भी और बंधी इन्हीं दायरों में ज़िंदगी के आखिरी पन्ने अपने मरण तक इस किताब को पढ़ती नहीं जीती है स्त्री....!! ©Bharat Kumar

#Dil_Ki_Baat

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