आधी अधूरी रात में, याद कभी जब तुमको आएंगे…! मावस्य | हिंदी

"आधी अधूरी रात में, याद कभी जब तुमको आएंगे…! मावस्य की उस स्याह रात में, चाह भी तुम मिल ना मिल पाओगी…! उन खामोशियाँ में दबी चीख को, तब तुम सुन ना पाओगी…..! छुपा हुआ इन शब्दों में,  पर तुम देख ना मुझको पाओगी….! जब कहता था थी तुम तब बहरी थी, सच-झूठ घावों पीड़ा गहरी थी….! अब में इस धरा में जीवित नही, तब बता सब राज क्या कर जाओगी...! पर हम अब क्या कर पाएंगे, मुझे मालूम है एक दिन तुम भी पछताओगी..! कुछ लिख पढ़ कर छोड़ गया हूँ, क्या तुम अब उसे सुन समझ पाओगी..! ये चन्द लाइन सुनना-पढ़ना मेरी,  जीन पर मेरा खून सना है…! बहुत लिखा है इश्क महोब्बत प्यार वफ़ा पर, क्या अब इन शब्दों को पूरा कर पाओगी…! वो डायरी ढूढ़ना तू मेरी, जिस में मेरी अधूरी तलाश लिखी है…! जरा दिल से पढ़ना हर आखर को, जिनमें मेरी खामोसी  चीख रही है…! अफसोस कि तू समझ ना पाया,  हर आखर आखर में पीर छुपी  है …! पूछ के देखना हर पंगती को,  धमनी सी जो अब मर्त पड़ी है….! सच ही सोचा तुमने की मर जाऊंगा,  तिनका तिनका सा उड़ जाऊंगा…! खून से मैने रंग भरा है,  इन लफ्जों में तेरा दिया दर्द भरा है….!!                                                     एक पथिक सुमन भट्ट...✍️"

 आधी अधूरी रात में, याद कभी जब तुमको आएंगे…!
मावस्य की उस स्याह रात में, चाह भी तुम मिल ना मिल पाओगी…!
उन खामोशियाँ में दबी चीख को, तब तुम सुन ना पाओगी…..!
छुपा हुआ इन  शब्दों  में,  पर तुम देख ना मुझको पाओगी….!
जब कहता था थी तुम तब बहरी थी, सच-झूठ घावों पीड़ा गहरी थी….!
अब में इस धरा में जीवित नही, तब बता सब राज क्या कर जाओगी...!
पर हम अब क्या कर पाएंगे, मुझे मालूम है एक दिन तुम भी पछताओगी..!
कुछ लिख पढ़ कर छोड़ गया हूँ, क्या तुम अब उसे सुन समझ पाओगी..!
ये चन्द लाइन सुनना-पढ़ना मेरी,  जीन पर मेरा खून सना है…!
बहुत लिखा है इश्क महोब्बत प्यार वफ़ा पर, क्या अब इन शब्दों को पूरा कर पाओगी…!
वो डायरी ढूढ़ना तू मेरी, जिस में मेरी अधूरी तलाश लिखी है…!
जरा दिल से पढ़ना हर आखर को, जिनमें मेरी खामोसी  चीख रही है…!
अफसोस कि तू समझ ना पाया,  हर आखर आखर में पीर छुपी  है …!
पूछ के देखना हर पंगती को,  धमनी सी जो अब मर्त पड़ी है….!
सच ही सोचा तुमने की मर जाऊंगा,  तिनका तिनका सा उड़ जाऊंगा…!
खून से मैने रंग भरा है,  इन लफ्जों में  तेरा दिया  दर्द भरा है….!!

                                                    एक पथिक सुमन भट्ट...✍️

आधी अधूरी रात में, याद कभी जब तुमको आएंगे…! मावस्य की उस स्याह रात में, चाह भी तुम मिल ना मिल पाओगी…! उन खामोशियाँ में दबी चीख को, तब तुम सुन ना पाओगी…..! छुपा हुआ इन शब्दों में,  पर तुम देख ना मुझको पाओगी….! जब कहता था थी तुम तब बहरी थी, सच-झूठ घावों पीड़ा गहरी थी….! अब में इस धरा में जीवित नही, तब बता सब राज क्या कर जाओगी...! पर हम अब क्या कर पाएंगे, मुझे मालूम है एक दिन तुम भी पछताओगी..! कुछ लिख पढ़ कर छोड़ गया हूँ, क्या तुम अब उसे सुन समझ पाओगी..! ये चन्द लाइन सुनना-पढ़ना मेरी,  जीन पर मेरा खून सना है…! बहुत लिखा है इश्क महोब्बत प्यार वफ़ा पर, क्या अब इन शब्दों को पूरा कर पाओगी…! वो डायरी ढूढ़ना तू मेरी, जिस में मेरी अधूरी तलाश लिखी है…! जरा दिल से पढ़ना हर आखर को, जिनमें मेरी खामोसी  चीख रही है…! अफसोस कि तू समझ ना पाया,  हर आखर आखर में पीर छुपी  है …! पूछ के देखना हर पंगती को,  धमनी सी जो अब मर्त पड़ी है….! सच ही सोचा तुमने की मर जाऊंगा,  तिनका तिनका सा उड़ जाऊंगा…! खून से मैने रंग भरा है,  इन लफ्जों में तेरा दिया दर्द भरा है….!!                                                     एक पथिक सुमन भट्ट...✍️

अफसोस तू सुन ना पाओगी

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