एक दिया तेरे नाम का
जो जगमगाता रहता है बिना किसी त्यौहार के
रोशनी जिसकी कभी भी धुंधली होती नहीं है
प्रेम से प्रभावशाली और कोई ज्योति नहीं है
मैं सीचता हु उसको,बुझने के डर से
जला हु उसके संग कई उम्र से
तूफ़ान आज का मेरा कल ना उजाड़ दे
बचाता हु खुद को अकेलेपन के हुनर से
जब भी नकारा बेसहारा अंधेरा
मुझ पर पसर जाता है
तब तब दीप तेरी परछाई का आकार बनाता है
रूठी उम्मीदों में फिर से जीवन जगाता है
मेरे इश्क पर विस्वास को
यकीन में तब्दील कर जाता है
©JITESH BHARDWAJ
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