हमें अब और कितना दौड़ना है
यकीनन खुद से ज्यादा दौड़ना है
मिली हैं मंज़िलें उनको जहाँ में
जिन्हें मालूम ये था दौड़ना है
नहीं आशां रहा अब घर चलाना
जहाँ आराम आया दौड़ना है
मेरी यादों में बचपन खेल सा है
फ़क़त बस्ता उठाया दौड़ना है
बुजुर्गों की रवानी पर जहन में
वही अपना पराया दौड़ना है
जहाँ से दौड़ आया था कभी में
मुझे उस घर का रस्ता दौड़ना है
चलो चलते है अब हम फ़िर मिलेंगे
जरुरी काम आया दौड़ना है
जहाँ आयेगा ऊपर से बुलावा
यूँ माटी कर के काया दौड़ना है
©Dev Sharma
#KashmiriFiles