गिरे हुओं के भी साथ रह कर गिरा नहीं है
वो शख़्स थोड़ा सा नकचड़ा हैं बुरा नहीं है
जो उसके घर की सब दावतों में शरीख हैं पर
यों कह रहे है वो जो फलां है मेरा नहीं है
वो देखते है के पाँव छालों, से भर गया है
यूं तो किसी ने ,ये मेरा जूता सिला नहीं है
वो जो दरख्तो को काट लाए क्या जानते है
कि उसकी जड़ में लगा पसीना मरा नहीं है
इक ऐसी गुल्लक भरी हुई में ,यूं ही लबालब
बस एक गम है, कि एक सिक्का खरा नहीं है
तमाम हाथों ने ली हुई है मशाल ए गम भी
यूं कह रहे है तुम्हारा गम कुछ बड़ा नहीं है
©Dev Sharma
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