बच्चपन भी कितना मासूम था। टूटते तारो से सपने पूरे | हिंदी Shayari

"बच्चपन भी कितना मासूम था। टूटते तारो से सपने पूरे होने कि उम्मीद रखा करते थे। ... ©8471Inayat khan"

 बच्चपन भी कितना मासूम था। 
टूटते तारो से सपने पूरे होने कि उम्मीद रखा करते थे।  ...

©8471Inayat khan

बच्चपन भी कितना मासूम था। टूटते तारो से सपने पूरे होने कि उम्मीद रखा करते थे। ... ©8471Inayat khan

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