मिले ना फूल तो कटों से ज़ख्म खाना है तेरी गली में

"मिले ना फूल तो कटों से ज़ख्म खाना है तेरी गली में मुझे बार बार आना है में अपने खून का इल्जाम दूं तो किस को दूं लिहाज़ ये है के कातिल से दोस्ताना है saqlain waris"

 मिले ना फूल तो कटों से ज़ख्म खाना है  तेरी गली में मुझे बार बार आना है 
में अपने खून का इल्जाम दूं तो किस को दूं लिहाज़ ये है के कातिल से दोस्ताना है

saqlain waris

मिले ना फूल तो कटों से ज़ख्म खाना है तेरी गली में मुझे बार बार आना है में अपने खून का इल्जाम दूं तो किस को दूं लिहाज़ ये है के कातिल से दोस्ताना है saqlain waris

ashiqui shayari

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