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सफ़र सोच का
शुरू कर दिया।
मन मस्तिष्क का
गुरु बन गया।
पहाड़ों की घाटियों में
बसा था कहीं जो।
संकीर्ण रास्तों में
फंसा था कहीं जो।
उसमें हवाओं का
हौसला भर दिया।
अवचेना में दबे
वैचारिक ऊष्मा को
जागृत कर उसे
वाष्पित कर दिया।
विचारों ने सघन हो
बादल का रूप धर लिया
उड़ कर फैलता वो
तलहटी से ऊपर उठा
हर बाधाओं को
अब पार कर गया।
मिल काले बादलों से
सुसंगती को चुना।
गहन सोच का
खुद में जल भर लिया।
बरसा बारिश बन वो
टकराया सुसुप्त तन से
मरते सुविचारों को
जीवंत कर दिया।
©अलका मिश्रा
©alka mishra
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