#Sarkari भारी मन, थोड़ी उदासी, जिम्मेदारी और अनि | हिंदी Poetry

"#Sarkari भारी मन, थोड़ी उदासी, जिम्मेदारी और अनिश्चितताओं के बीच हर बार घर से वापस आ जाना पड़ता है शहर यूंही ही। यहां आकर कुछ और ही हो जाता हूं, खुद को छोड़ आता हूं वहीं कहीं, जब से सरकारी हुए हैं खुद के रहे नहीं। ©Sanjiv Chauhan"

 #Sarkari 

भारी मन, थोड़ी उदासी, जिम्मेदारी और अनिश्चितताओं के बीच हर बार घर से वापस आ जाना पड़ता है शहर यूंही ही।
यहां आकर कुछ और ही हो जाता हूं,  खुद को छोड़ आता हूं वहीं कहीं, जब से सरकारी हुए हैं खुद के रहे नहीं।

©Sanjiv Chauhan

#Sarkari भारी मन, थोड़ी उदासी, जिम्मेदारी और अनिश्चितताओं के बीच हर बार घर से वापस आ जाना पड़ता है शहर यूंही ही। यहां आकर कुछ और ही हो जाता हूं, खुद को छोड़ आता हूं वहीं कहीं, जब से सरकारी हुए हैं खुद के रहे नहीं। ©Sanjiv Chauhan

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