1.पंखुड़ी की तरह क्यूँ झरूँ रोज मैं।
आपकी याद में क्यूँ मरूँ रोज मैं।
2.ज़िदगी तो जली धूप में ही सदा।
रंग सारे तभी तो भरूँ रोज मैं।।
3.लोग कहते यही सच सदा बोलिए।
झूठ को साँच कैसे करूंँ रोज मैं।।
4.ये जालिम जमाना छले है सदा।
दिल लगी से तभी तो डरूँ रोज मैं।।
5.आपकी बात का है असर ये सनम।
सोचकर ही सदा पग धरूँ रोज मैं।।
साधना कृष्ण
©साधना कृष्ण
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