शब-ए-ग़म की अंजुमन का कोई सितारा मैं नहीं हूँ,
डूब जाओगे समन्दर में किनारा मैं नहीं हूँ।
जुर्म क्या है सफ़-ए-महशर ने पुकारा जो मुझे यूँ,
ख़ाक मंज़र में कहीं बुझता शरारा मैं नहीं हूँ।
बारहा ख़ुद के मुक़द्दर से गिरी हूँ मैं कदर इस,
चाह हूँ सबकी मगर ख़ुद को गवारा मैं नहीं हूँ।
ख़ाब भागें क्यों ग़ज़ालों से, इरादें हैं बता क्या,
हम-नफ़स यूँ सिर्फ चाहत का नज़ारा मैं नहीं हूँ।
चाक़ हैं कर्गस-ए-वीराँ से मरासिम-ओ-ज़माना,
नोच खाते हैं, कहीं इनको ख़सारा मैं नहीं हूँ।
क़ौल बदली के घरों तक भी सबा लाना कभी तू,
भूल जाते हैं सभी बंदिश-ए-आरा मैं नहीं हूँ।
सांस हर नौहा-निहाँ ढूँढे तरन्नुम शाद कोई अब,
पीढ़ियों का दर्द, गुनाहों का गुज़ारा मैं नहीं हूँ।
ज़ात तेरी भी वही "बाग़ी" जिसे कोई ना सहारा,
नाज़, यूँ पुर-नूर, गैरों का सवाँरा मैं नहीं हूँ।
©Princi Mishra
औरत
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