रोज़ ख्वाहिशों से होती जंग है
कहती है हाथ मेरे ज़रा तंग है
रोज़ नया सबक सिखलाती है
कहती है यही ज़िन्दगानी है
रोज़ यह सुख दिखलाती है
पर बदले में दुःख दे जाती है
रोज़ ‘फरहान’ पर यह मरती है
उससे मुहोब्बत जो करती है
दिल में कसक बन रह जाती है
तभी तो यह किस्मत कहलाती है।
किस्मत।